ALFAZ SHAYARI

 अल्फ़ाज़ शायरी 

उनकी आँखों के इशारों के अल्फाज,
युही नही समझ लेते है हम,
उस को क्या पता मोहब्बत करते है हम,
जिनसे उनकी खामोशी भी समझ लेते है हम।

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 ख़ामोशी क्या है जो अल्फ़ाज़ तक न पहुँचे इश्क़ 
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है।

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मोहब्बत के हाथो इस कदर टूटे है 
हम अल्फाजो से खेलते रह गए,
और वो दिल से खेल के चली गईं।

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 आपके अल्फाज हमारे मन को,
कुछ इस कदर भा जाते हैं
आप झूठा ही हम पर प्यार दिखाएं,
हम तो उससे भी खुश हो जाते हैं।

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कौन चुप रहता किसी महफ़िल मैं 
जब सन्नाटा फ़ैल जाये तो समझ लेना,
कि अल्फ़ाज गहरे उतरे हैं दिल में।

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 न जाने किस दौर से गुज़र रही है ज़िंदगी 
अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़,
ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ा हूँ।

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 इश्क़ को समझने के अगर दिल मैं एहसास ना होते,
मर ही गये होते अगर शायरी के अल्फाज ना होते।

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 आप की याद मेरी शायरी के अल्फाज बन गए,
भरी महफिल में लोग मेरे दर्द को भी वाह वाह कह गए।

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इश्क़ बन गया मेरे आँखों का समंदर 
मेरे अल्फ़ाज ही है मेरे दर्द का मरहम 
अगर मैं शायर ना होता तो पागल होता।

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 सोच समझ कर बोलिए क्योंकि अल्फाजों में 
जान होती है,
इन्हीं से आरती अरदास और अजान होती है,
ये मन मैं उतरने वाले वो संगीत हैं  जिससे 
इंसान की पहचान होती है।

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 हर वक़्त यादो का सिलसिला इश्क़ की खुसबू बन कर बस तू मुझमे रहती है 
मेरे अधूरे रहते हैं मेरे अल्फाज तेरे जिक्र के बिना,
मेरी शायरी की रूह तो बस तु है।

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