किस्मत शायरी

किस्मत शायरी 


ये किस्मत की किस्ती का 
मांझी कियो सो जाता है 
चाँद ढूंढ़ते ढूंढ़ते तारो में 
कियो खो जाता है !

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खुद में ही उलझी हुई है ज़िंदगी 
तो मुझे क्या सुलझाएगी 
भला हाथ की चंद लकीरे 
भी क्या मेरी किस्मत बताएगी !


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आप मिले तो ऐसा लगा
 हर दूवा काबुल हो गयी 
कांच सी टूटी थी किस्मत 
मेरी हीरो का नूर हो गई !

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मुझमें और किस्मत में
 बस यही जंग रही 
मैं उसके फेसलो से तंग 
और वो मेरे होसलो से दांग रही !

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